Saturday, 9 April 2011

क्या है अन्ना हजारे का जनलोकपाल बिल...............Sath De Jane

कुछ समय से मैंने ये निर्णय लिया है की भारत के उन बातों के बारे में आप
सब लोगों को जानकारी दूँ जिनसे हमें भ्रमित किया जा रहा है। आप लोगों के
ज्ञान को मैं कम कर के नहीं आँक रहा हूँ लेकिन कई बातें ऐसी होती हैं जो
असल में वैसी होती नहीं है जैसा हमें बताया जाता है।  मसलन, भारत में
हमेशा ये पढ़ाया गया की भारत अंधेरों का देश था, भारत मदारियों का देश
था, भारत संपेरों का देश था, अंग्रेज़ आये तो उन्होंने हमें सब सिखाया,
हमें शिक्षित किया। अंग्रेज नहीं आते तो हमारे यहाँ पिछड़ापन ही पसरा
रहता, हम अंधेरों में ही घिरे रहते, वगैरह वगैरह । दुःख तो ज्यादा तब
होता है जब हमारे देश के प्रधानमंत्री और अन्य कैबिनेट मंत्री इस तरीके
की बात करते हैं । क्या हम वाकई अँधेरे में थे ? क्या हम वाकई जाहिल थे ?
क्या हम वाकई पिछड़े थे ? ये सवाल मेरे मन में हमेशा रहा । फिर मन ये जवाब
भी देता था की अगर हम वाकई पिछड़े थे तो क्या अंग्रेज यहाँ 250 साल घास
छिल रहे थे, उसके पहले पुर्तगाली आये, स्पैनिश आये, और बहुत से लोग आये।
मैं आप सब से पूछता हूँ की गरीब के घर में कोई रहता है क्या ? और उनको
सुधारने और अच्छा बनाने का ठेका कोई लेता है क्या? और वो भी गोरी चमड़ी
वाले? असंभव। इसी सिलसिले में मैंने कुछ तथ्य आप सब लोगों के सामने लाने
का संकल्प लिया है । आज पेश है पहली कड़ी ....
सन 1757 की प्लासी की लड़ाई
जैसा की आप सब जानते हैं की अंग्रेजों को भारत में व्यापार करने का
अधिकार जहाँगीर ने 1618 में दिया था और 1618 से लेकर 1750 तक भारत के
अधिकांश राजाओं और राजवाड़ों को अंग्रेजों ने छल से कब्जे में ले लिया था
। बंगाल उनसे उस समय तक अछूता था। और उस समय बंगाल का नवाब था सिराजुदौला
। बहुत ही अच्छा शासक था, बहुत संस्कारवान था । मतलब अच्छे शासक के सभी
गुण उसमे मौजूद थे । अंग्रेजों का जो फ़ॉर्मूला था उस आधार पर वो उसके
पास भी गए व्यापार की अनुमति मांगने के लिए गए लेकिन सिराजुदौला ने कभी
भी उनको ये इज़ाज़त नहीं दी क्यों की उसके नाना ने उसको ये बताया था की सब
पर भरोसा करना लेकिन गोरों पर कभी नहीं और ये बातें उसके जेहन में हमेशा
रहीं इसलिए उसने अंग्रेजों को व्यापार की इज़ाज़त कभी नहीं दी । अंग्रेजों
ने कई बार बंगाल पर हमला किया लेकिन हमेशा हारे । मैं यहाँ स्पष्ट कर दूँ
की अंग्रेजों ने कभी भी युद्ध करके भारत में किसी राज्य को नहीं जीता था
वो हमेशा छल और साजिस से ये काम करते थे।

उस समय का बंगाल जो था वो बहुत बड़ा राज्य था उसमे शामिल था आज का प.
बंगाल, बिहार, झारखण्ड, उड़ीसा, बंग्लादेश, पूर्वोत्तर के सातों राज्य और
म्यांमार (बर्मा) । हम जो इतिहास पढ़ते हैं उसमे बताया जाता है की पलासी
के युद्ध में अंग्रेजों और सिराजुदौला के बीच भयंकर लड़ाई हुई और
अंग्रेजों ने सिराजुदौला को हराया । लेकिन सच्चाई कुछ और है । मन में
हमेशा ये सवाल रहा की आखिर सिराजुदौला जैसा शासक हार कैसे गया और ये भी
सवाल मन में था की आखिर अंग्रेजों के पास कितने सिपाही थे और सिराजुदौला
के पास कितने सिपाही थे । भारत में पलासी के युद्ध के ऊपर जितनी भी
किताबें हैं उनमे से किसी में भी इस संख्या के बारे में जानकारी नहीं है
। इस युद्ध की जानकारी उपलब्ध है लन्दन के इंडिया हाउस लाइब्ररी में ।
बहुत बड़ी लाइब्ररी है और वहां भारत की गुलामी के समय के 20 हज़ार
दस्तावेज उपलब्ध है । वहां उपलब्ध दस्तावेज के हिसाब से अंग्रेजों के पास
पलासी के युद्ध के समय मात्र 300 सिपाही थे और सिराजुदौला के पास 18 हजार
सिपाही । किसी भी साधारण आदमी से आप ये सवाल कीजियेगा की एक तरफ 300
सिपाही और दूसरी तरफ 18 हजार सिपाही तो युद्ध कौन जीतेगा ? तो जवाब
मिलेगा की 18 हजार वाला लेकिन पलासी के युद्ध में 300 सिपाही वाले
अंग्रेज जीत गए और 18 हजार वाला सिराजुदौला हार गया । और अंग्रेजों के
House of Commons   में ये कहा जाता था की अंग्रेजों के 5 सिपाही = भारत
का एक सिपाही । तो सवाल ये उठता है की इतने मज़बूत 18 हजार सिपाही उन
कमजोर 300 सिपाहियों से हार कैसे गए ?

अंग्रेजी सेना का सेनापति था रोबर्ट क्लाइव और सिराजुदौला का सेनापति था
मीरजाफर । रोबर्ट क्लाइव ये जानता था की आमने सामने का युद्ध हुआ तो एक
घंटा भी नहीं लगेगा और हम युद्ध हार जायेंगे और क्लाइव ने कई बार चिठ्ठी
लिख के ब्रिटिश पार्लियामेंट को ये बताया भी था । इन दस्तावेजों में
क्लाइव की दो चिठियाँ भी हैं । जिसमे उसने ये प्रार्थना की है की अगर
पलासी का युद्ध जितना है तो मुझे और सिपाही दिए जाएँ । उसके जवाब में
ब्रिटिश पार्लियामेंट के तरफ से ये चिठ्ठी भेजी गयी थी की हम अभी (1757
में) नेपोलियन बोनापार्ट के खिलाफ युद्ध लड़ रहे हैं और पलासी से ज्यादा
महत्वपूर्ण हमारे लिए ये युद्ध है और इस से ज्यादा सिपाही हम तुम्हे नहीं
दे सकते । तुम्हारे पास जो 300 सिपाही हैं उन्ही के साथ युद्ध करो ।
रोबर्ट क्लाइव ने तब अपने दो जासूस लगाये और उनसे कहा की जा के पता लगाओ
की सिराजुदौला के फ़ौज में कोई ऐसा आदमी है जिसे हम रिश्वत दे लालच दे और
रिश्वत के लालच में अपने देश से गद्दारी कर सके ।

उसके जासूसों ने ये पता लगा के बताया की हाँ उसकी सेना में एक आदमी ऐसा
है जो रिश्वत के नाम पर बंगाल को बेच सकता है और अगर आप उसे कुर्सी का
लालच दे तो वो बंगाल के सात पुश्तों को भी बेच सकता है । और वो आदमी था
मीरजाफर, और मीरजाफर ऐसा आदमी था जो दिन रात एक ही सपना देखता था की वो
कब बंगाल का नवाब बनेगा। ये बातें रोबर्ट क्लाइव को पता चली तो उसने
मीरजाफर को एक पत्र लिखा। ये पत्र भी उस दस्तावेज में उपलब्ध है । उसने
उस पत्र में दो ही बाते लिखी । पहला ये की " अगर तुम हमारे साथ दोस्ती
करो और ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ समझौता करो तो हम युद्ध जीतने के बाद
तुम्हे बंगाल का नवाब बना देंगे" और दूसरी बात की "जब तुम बंगाल के नवाब
हो जाओगे तो बंगाल की सारी सम्पति तुम्हारी हो जाएगी और उस सम्पति में से
5 % हमें दे देना और बाकि तुम जितना लूटना चाहो लुटते रहना" । मीरजाफर तो
दिन रात यही सपना देखा करता था तो उसने तुरत रोबर्ट क्लाइव को एक पत्र
लिखा की " मुझे आपकी दोनों शर्तें मंज़ूर हैं बताइए करना क्या है ? " तो
क्लाइव ने इस सम्बन्ध में अंतिम पत्र लिखा और कहा की " तुमको बस इतना
करना है की युद्ध जिस दिन शुरू होगा उस दिन आप अपने 18 हजार सिपाहियों से
कहना की वो मेरे सामने समर्पण कर दे । तो मीरजाफर ने कहा की ये हो जायेगा
लेकिन आप अपने जबान पर कायम रहिएगा । क्लाइव का जवाब था की हम बिलकुल
अपनी जबान पर कायम रहेंगे ।

और तथाकथित युद्ध शुरू हुआ 23 जून 1757 को और बंगाल के 18 हजार सिपाहियों
ने सेनापति मीरजाफर के कहने पर 40 मिनट के अन्दर समर्पण कर दिया और
रोबर्ट क्लाइव के 300 सिपाहियों ने बंगाल के 18 हजार सिपाहियों को बंदी
बना लिया और कलकत्ता के फोर्ट विलियम में बंद कर दिया और 10 दिनों तक
सबों को भूखा प्यासा रखा और ग्यारहवें दिन सब की हत्या करवा दी । और
हत्या करवाने में मीरजाफर क्लाइव के साथ शामिल था । उसके बाद क्लाइव ने
मीरजाफर के साथ मिल कर मुर्शिदाबाद में सिराजुदौला की हत्या करवाई । उस
समय मुर्शिदाबाद बंगाल की राजधानी हुआ करती थी । और फिर वादे के अनुसार
क्लाइव ने मीरजाफर को बंगाल का नवाब बना दिया । और बाद में क्लाइव ने
अपने हाथों से मीरजाफर को छुरा घोंप कर मार दिया ।

इसके बाद रोबर्ट क्लाइव ने कलकत्ता को लूटा और 900 पानी के जहाज सोना,
चांदी, हीरा, जवाहरात लन्दन ले गया । वहां के संसद में जब क्लाइव गया तो
वहां के प्रधानमंत्री ने उस से पूछा की ये भारत से लुट के तुम ले के आये
हो तो क्लाइव ने कहा की नहीं इसे मैं भारत के एक शहर कलकत्ता से लूट के
लाया हूँ । कितना होगा ये ? मैंने इसकी गणना तो नहीं क़ि है लेकिन 000
Million स्टर्लिंग पौंड का ये होगा (1 Million = 10 लाख) । उस समय (1757
) के स्टर्लिंग पौंड के कीमत में 300 गुना कमी आयी है और आज के हिसाब से
उसका मूल्याङ्कन किया जाये तो ये होगा 1000X1000000X300X80 । Calculator
तो फेल हो जायेगा  । रॉबर्ट क्लाइव अकेला नहीं था ऐसे 84 अधिकारी भारत
आये और सब ने भारत को बेहिसाब लूटा । वारेन हेस्टिंग्स, कर्जन,लिलिथ्गो,
डिकेंस, बेंटिक, कार्नवालिस जैसे लोग आते रहे और भारत को लुटते रहे। ये
थी प्लासी के युद्ध की असली कहानी । अगली बार 1757 से थोडा आगे बढूँगा ।

मीर जाफर ने अपनी हार और क्लाइव की जीत के बाद कहा की "अंग्रेजो आओ
तुम्हारा स्वागत है इस देश में तुम्हे जितना लुटा है लूटो बस मुझे कुछ
पैसा दे दो और कुर्सी दे दो" । 1757 में तो सिर्फ एक मीरजाफर था जिसे
कुर्सी और पैसे का लालच था अभी तो हजारों मीरजाफर इस देश में पैदा हो गए
हैं जो वही भाषा बोल रहे हैं । जो वैसे ही देश को गुलाम बनाने में लगे
हुए हैं जैसे मीरजाफर ने इस देश को गुलाम बनाया था । सब पार्टी के नेता
एक ही सोच रखते हैं चाहे वो ABC पार्टी के हों या XYZ पार्टी के । आप
किसी को अच्छा मत समझिएगा क्यों की इन 64 सालों में सब ने चाहे वो
राष्ट्रीय पार्टी हो या प्रादेशिक पार्टी,  प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से
सत्ता का स्वाद तो सबो ने चखा ही है ।



Ek Desh Bhakt Jo Seva Karna Chahata hai Desh Ki........
Please Sab Sath Do Isme...........Jai Hind Jai Bharat

1 comment:

  1. great effort
    jab ham jagege tab desh surkshit rah payega

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